प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, हादसा उस समय हुआ जब लाइनमैन ने ऑपरेटर को फोन कर लाइन चालू करने के निर्देश दिए, जबकि मरम्मत का कार्य चल रहा था। यह पूरी तरह से नियमों के खिलाफ है। लाइन चालू करने से पहले फील्ड से क्लियरेंस लेना अनिवार्य होता है, जिसे नजरअंदाज किया गया।
झुलसे मजदूरों की हालत गंभीरझुलसे मजदूरों को तत्काल उप स्वास्थ्य केंद्र हसौद लाया गया, जहां से प्राथमिक उपचार के बाद उन्हें जिला चिकित्सालय जांजगीर रेफर कर दिया गया था घायलों की हालत गंभीर बनी हुई थी।
ना विभाग बोले, ना अधिकारी सामने आए हादसे को कई दिन बीत जाने के बावजूद ना तो बिजली विभाग की ओर से कोई प्रेस नोट जारी किया गया है और ना ही जिम्मेदारों पर कोई कार्रवाई की गई है। स्थानीय नागरिकों का कहना है कि यह विभाग की पुरानी आदत बन चुकी है — जब तक दबाव ना बने, कोई जवाबदेही तय नहीं होती।
जिम्मेदारों को बचाया जा रहा है" – आम जनता क्षेत्रवासियों का आरोप है कि हसौद सब स्टेशन के अधिकारी एवं कर्मचारी लंबे समय से मनमाने ढंग से काम कर रहे हैं। पहले भी इस तरह की कई शिकायतें की जा चुकी हैं, लेकिन हर बार मामला दबा दिया जाता है। लोगों का कहना है कि इस बार भी मामले को रफा-दफा करने की कोशिश की जा रही है।
प्रशासनिक चुप्पी पर उठे सवाल
स्थानीय प्रशासन, खासकर कलेक्टर और बिजली विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों को इस गंभीर घटना की पूरी जानकारी है। इसके बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। जनता सवाल उठा रही है कि आखिर किस दबाव में अधिकारी मौन हैं?
जन संगठनों ने दी चेतावनी
मजदूर संघों और सामाजिक संगठनों ने चेतावनी दी है कि यदि दोषियों पर शीघ्र कार्रवाई नहीं हुई और पीड़ितों को मुआवजा नहीं मिला, तो वे जनआंदोलन की राह पर उतरेंगे।
क्या कहते हैं नियम?
बिजली विभाग के नियमों के अनुसार, मेंटेनेंस कार्य के दौरान लाइन को "अंडर शटडाउन" रखा जाता है और फील्ड से अनुमति मिलने के बाद ही बिजली आपूर्ति दोबारा चालू की जाती है। इस मामले में नियमों की सीधी अनदेखी हुई है, जो न सिर्फ अनुशासनहीनता है बल्कि यह एक आपराधिक लापरवाही भी मानी जाती है।
संपादकीय टिप्पणी:
यह घटना केवल एक दुर्घटना नहीं, बल्कि सिस्टम की असंवेदनशीलता और जवाबदेही के अभाव का उदाहरण है। अगर ऐसे मामलों में सख्त कार्रवाई नहीं की गई, तो न केवल कर्मचारियों की जान जोखिम में पड़ी रहेगी बल्कि जनता का प्रशासन से भरोसा भी उठ जाएगा।
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